सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विशेष

गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

एखन हारल नै छी खेल जितनाइ बांकी छै इतिहासक पन्नामे नाम लिखनाइ बांकी छै गन्तव्यक पथ पर उठलै पहिल डेग सम्हारल अन्तिम फल धरि रथ जिनगीक घिचनाइ बांकी छै विद्वानक अखड़ाहामे करैत प्रतिस्पर्धा बनि लोकप्रिय लोकक बीच टिकनाइ बांकी छै लागल हेतै कर्मक बाट पर ठेस नै ककरा संघर्षक यात्रामे नोर पिबनाइ बांकी छै माए मिथिला नै रहितै तँ के जानितै सगरो ऋण माएके सेवा करि कऽ तिरनाइ बांकी छै सब इच्छा आकांक्षा एक दिन छोडिकेँ कुन्दन अन्तर मोनक परमात्मासँ मिलनाइ बांकी छै 2222-2221-221-222 © कुन्दन कुमार कर्ण