© कुन्दन कुमार कर्ण
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Saturday, May 27, 2017
हो भरल नेहक खिस्सासँ से किताब चाहीलोक जिनगी कोना एसगर बिता दए छैएक संगीके हमरा तँ संग आब चाहीदर्दमे सेहो मातल हिया रहै निशामेसाँझ पडिते बोतलमे भरल शराब चाहीमोनमे मारै हिलकोर किछु सवाल नेहकवास्तविक अनुभूतिसँ मोनके जवाब चाहीसोचमे ओकर कुन्दन समय जतेक बीतलआइ छन-छनके हमरा तकर हिसाब चाही2122-2221-212-122
© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments |
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Wednesday, May 10, 2017
Labels: तस्वीर संग्रह | 0 comments |
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गामक बूढ हमर नानीछै ममतासँ भरल खानीपूजा पाठ करै नित दिनदुखिया लेल महादानीखिस्सा खूब सुनाबै ओराजा कोन रहै रानीभोरे भोर उठा दै छैसुधरै जैसँ हमर बानी
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