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गजल
Tuesday, December 25, 2018
मालूम नै छल तोहर नैना चितचोर गेजहियासँ मिललै धरकन मारै हिलकोर गेअदहन सिनेहक जे चाहक चूल्हापर चढ़लखदकल हियामे अगबे मिलनक इनहोर गेरूमीक कविता सन मार्मिक तुकबन्दी जकाँदुनियाँक कोनो कवि लग नै तोहर तोड़ गेशीशा जकाँ आखर आ पानी सन भाव छैकहलहुँ गजल तोरे नाँओ भोरे भोर गेबस एक तोरे आगू कोमल बनि जाइ छीचलतै हमर जिनगीपर की ककरो जोर गेलुत्ती सुनगि गेलै प्रेमक अगहन मासमेबैशाख धरि हेबे टा करतै मटिकोर गेदोसर नजरिके कुन्दन सोहाइत आब नैचाहे रहै कारी या अछि केओ गोर गे221-222-222-2212© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 1 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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भक्ति गजल
Monday, October 22, 2018
हे जया जगदम्बा जगतारिणी कि जय होभगवती कल्याणी भयनाशिनी कि जय होकष्ट मोचक कामाक्षी जग सुखस्वरुपादुर्गपारा देवी दुखहारिनी कि जय होसिंहपर अासित मैया मातृका भवानीकामिनी व्रह्मा वरदायिनी कि जय होइन्द्र दुखमे पुजलक परमेश्वरी अहींकेदेव रक्षक अजिता कात्यायिनी कि जय होनाम जपलापर भक्तक मृत्यु जाइ छै टरिशैलपुत्री कालक संहारिनी कि जय होरहि हृदयमे कुन्दनपर नित करब करुणाप्रार्थना अछि र्इ पशुपति भामिनी कि जय हो212-222-2212-122© कुन्दन कुमार कर्णLabels: भक्ति गजल | 1 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Tuesday, July 24, 2018
देश भरि कहादन रेल चलतै आबफेर किछु विकासक खेल चलतै आबथालमे धमाधम पीच करतै बाटटोल-टोल हेलम हेल चलतै आबकामकाज हेतै सारहे बाईसयोजनाक खातिर झेल चलतै आबबुद्धिमान सब बेहोश जेना भेलराजकाजमे बकलेल चलतै आबनागरिकसँ उप्पर छै बनल सरकारलोकतन्त्र ककरा लेल चलतै आबराजनीतिमे कुन्दन बढल अपराधजन जनारदनके जेल चलतै आब212-122-212-221© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Thursday, June 28, 2018
दर्दके सेहो ई दर्द दर्दनाक बुझाइ छैलोक छै किछु जकरा लेल सब मजाक बुझाइ छैएक छनमे बन्हन तोड़ि गेल बात बनाक ओआब नाता हमरो सूतरीक टाक बुझाइ छैसोझके दुनियामे के पुछै समाज जहर बनलनैन्ह टा बच्चा आ बूढ़ सब चलाक बुझाइ छैधुंइया जोरक उठलै पड़ोसियाक दलानमेरचयिता एहन षड्यंत्र केर पाक बुझाइ छैमोंछ पर तेजी ओकीलबा घुमाक दएत छैकचहरीके मुद्दामे बढल तलाक बुझाइ छै2122-2221-2121-1212© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Tuesday, June 19, 2018
जुआनीके पहिल उत्सव मनेलौं हमहियामे ओकरा जहिया बसेलौं हमसुरुआते गजब छल सोलहम बरिसकअचानक डेग यौवन दिस बढेलौं हमउचंगाके कमी नै टोलमे कोनोनजरि मिलिते इशारामे बजेलौं हमगवाही चान तारा छै पहिल मिलनककलीके संग भमरा बनि फुलेलौं हमअसानी छै कहाँ टिकनाइ नेही बनिसमाजक रीतमे शोणित बहेलौं हमकलम कापी किताबक कोन बेगरताजखन इतिहासमे प्रेमी लिखेलौं हमचिरै सन मोन ई उड़िते रहल कुन्दनअसम्भवपर किए असरा लगेलौं हमबहरे-हजज (1222×3)© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Wednesday, May 30, 2018
की कहू मोनमे किछु फूराइत नै अछि आइ काइलओकरा छोड़ि केओ सोहाइत नै अछि आइ काइलमोहिनी रूप ओकर केलक नैना पर कोन जादूचेहरा आब दोसर देखाइत नै अछि आइ काइलनेह जहियासँ भेलै हेरा रहलै सुधि बुधि दिनोदिनबात दुनियाक कोनो सोचाइत नै अछि आइ काइलशब्द जे छल हमर लग पातीमे लिखि सब खर्च केलौंभाव मोनक गजलमे बहराइत नै अछि आइ काइलसंग जिनगीक कुन्दन चाही ओकर सातो जनम धरिनिन्नमे आँखि आरो सपनाइत नै अछि आइ काइल
2122-1222-2222-2122© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Friday, May 18, 2018
ओकर संग ई जिनगीक असान बना देलकसुख दुखमे हृदयके एक समान बना देलकबुढ़हा गेल छल यौ बुद्धि विचार निराशामेज्ञानक रस पिआ ओ फेर जुआन बना देलकअध्यात्मिक जगतके बोध कराक सरलतासँहमरा सन अभागल केर महान बना देलकचाहक ओझरीमे मोन हजार दिशा भटकलअध्ययनेसँ तृष्णा मुक्त परान बना देलकअष्टावक्र गीता लेल विशेष गजल कुन्दनकहितेमे हमर मजगूत इमान बना देलक2221-2221-121-1222(तेसर शेरक पहिल मिसराक अन्तिमलघुके दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि)© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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Thursday, April 26, 2018
Labels: तस्वीर संग्रह | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Monday, April 23, 2018
तोरा बिना चान ताराक की मोलरंगीन संसार साराक की मोलअन्हारमे जे हमर संग नै भेलदिन दूपहरिया सहाराक की मोलचुप्पीक गम्भीरता बुझि चलल खेललग ओकरा छै इशाराक की मोलसंवेदना सोचमे छै जकर शुन्यनोरक बहल कोन धाराक की मोलअपने बना गेल हमरा जखन आनकुन्दन कहू ई विचाराक की मोल221-221-221-221© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Sunday, April 8, 2018
केओ सम्मानक भूखलकेओ पकवानक भूखलअपने आकांक्षा खातिरपण्डा भगवानक भूखलकरनी धरनी छाउर सननेता गुनगानक भूखलधरतीपर चल' नै जानैकवि छथि से चानक भूखलअपना चाहे जे किछु होअनकर नुकसानक भूखलसंतुष्टी सपना लोककसब अनठेकानक भूखल22-222-22© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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रेडियो नेपालक कार्यक्रम 'मधुरिमा'मे मैथिली गजल प्रस्तुति
Thursday, March 22, 2018
Labels: श्रव्य/दृश्य | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Monday, March 5, 2018
अस्तित्वमे अस्तित्व समा जेतै एक दिनअपनाक अपने संग मिला जेतै एक दिनबिनु शब्द आ संगीत मिलनके बेर प्रकृतिशुन्ना समयमे गीत सुना जेतै एक दिननै हम रहब नै देह रहत रहतै बोध टादुख दर्द सब जिनगीक परा जेतै एक दिनमस्तिष्कके सुख दुखसँ उपर लेबै जे उठाआनन्दमे र्इ मोन डुबा जेतै एक दिनबहिते हृदयमे जोरसँ कुन्दन नेहक हवाचैतन्य केर ज्ञात करा जेतै एक दिन2212-221-1222-212© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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बाल गजल
Saturday, February 10, 2018
पापा यौ चकलेट खेबै
कनिये नै भरिपेट खेबै
छुछ्छे कोना नीक लगतै
नमकिन बिस्कुट फेंट खेबै
हमहीं टा नै एसगर यौ
संगी सभके भेंट खेबै
मानब एके टासँ नै हम
पूरा दू प्याकेट खेबै
कुन्दन भैया आबि जेथिन
बांकी ओही डेट खेबै
222-221-22
© कुन्दन कुमार कर्णLabels: बाल गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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बाल गजल
Saturday, February 3, 2018
बौआ हमर छै बुधिआरलोकक करै छै सत्कारज्ञानी जकाँ कनिये टासँमाएसँ सिखलक संस्कारसंगी बना ओ पोथीकमानै कलमके संसारखाना समयपर खेलासँदेखू बनल छै बौकारहँसिते रहल सदिखन खूबमुस्कान देलक उपहारकुन्दनसँ खेलाइत कालजितबाक केलक जोगारबहरे - मुन्सरह© कुन्दन कुमार कर्णLabels: बाल गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Friday, January 19, 2018
कोनो दर्दमे आइ धरि मिठास नै छलभरिसक मोनमे प्रेमिकाक बास नै छलमिलिते नैन तोरासँ ठोर बाजि उठलैअनचिन्हारके टोकितों सहास नै छलसुन्नरताक संसारमे कमी कहाँ छैआरो लेल केने हिया उपास नै छलनेहक लेल भेलौं बताह नै तँ कहियोजिनगी एहि ढंगक रहल उदास नै छलप्रियतम बिनु जुआनी कटति रहै अनेरोलागल जोरगर चाहके पिआस नै छलयौवन देखलौं सृष्टिमे अनेक कुन्दनएहन पैघ भेटल कतौं सुवास नै छल2221-2212-121-22© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |
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गजल
Tuesday, January 9, 2018
नै उलहन कोनो नै उपराग तोरासँभरिसक बनतै दोसरके भाग तोरासँजियबै जिनगी हम माली बनिक' भमरासँसजतै ककरो मोनक जे बाग तोरासँपूरा हेतै से की सपनाक ठेकानअभिलाषा छल जे सजितै पाग तोरासँतोंही छलही सरगम शुर ताल संगीतछुछ्छे आखर रहने की राग तोरासँमेटा लेबै कुन्दन दुनियासँ अपनाकरहतै जिनगीमे नै किछु दाग तोरासँ222-222-221-221© कुन्दन कुमार कर्णLabels: गजल | 0 comments | Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook |