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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण
तस्वीर: भोरूकवा (Sunshine) अार्ट: कुन्दन कुमार कर्ण Sunshine By: Kundan Kumar Karna

गजल

तोरा बिना चान ताराक की मोल रंगीन संसार साराक की मोल अन्हारमे जे हमर संग नै भेल दिन दूपहरिया सहाराक की मोल चुप्पीक गम्भीरता बुझि चलल खेल लग ओकरा छै इशाराक की मोल संवेदना सोचमे छै जकर शुन्य नोरक बहल कोन धाराक की मोल अपने बना गेल हमरा जखन आन कुन्दन कहू ई विचाराक की मोल 221-221-221-221 © कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

केओ सम्मानक भूखल  केओ पकवानक भूखल अपने आकांक्षा खातिर पण्डा भगवानक भूखल करनी धरनी छाउर सन नेता गुनगानक भूखल धरतीपर चल' नै जानै कवि छथि से चानक भूखल अपना चाहे जे किछु हो अनकर नुकसानक भूखल संतुष्टी सपना लोकक सब अनठेकानक भूखल 22-222-22 © कुन्दन कुमार कर्ण