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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

देश भरि कहादन रेल चलतै आब फेर किछु विकासक खेल चलतै आब थालमे धमाधम पीच करतै बाट टोल-टोल हेलम हेल चलतै आब कामकाज हेतै सारहे बाईस योजनाक खातिर झेल चलतै आब बुद्धिमान सब बेहोश जेना भेल राजकाजमे बकलेल चलतै आब नागरिकसँ उप्पर छै बनल सरकार लोकतन्त्र ककरा लेल चलतै आब राजनीतिमे कुन्दन बढल अपराध जन जनारदनके जेल चलतै आब 212-122-212-221 © कुन्दन कुमार कर्ण