शोकसँ सजल महल छी हम
सुख केर आशमे बैसल
दुखमे खिलल कमल छी हम
भितरी उदास रहितो बस
बाहरसँ बनि हजल छी हम
जिनगी कऽ बाटपर सदिखन
सहि चोट नित चलल छी हम
कुन्दन सुना रहल अछि ई
संघर्षमे अटल छी हम
मात्रा क्रम : 2212-1222
© कुन्दन कुमार कर्ण
“साहित्य व्यक्ति कऽ सभ्य आ गजल अनुशासित बनाबै छै ।”
Tuesday, December 17, 2013
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गजल
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Sunday, December 15, 2013
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तस्वीर संग्रह
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Friday, December 6, 2013
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