रंग विरंगक भास छलै गीत गबैत परात रहै भोर कहै शुभभोर सदा बड्ड मजा छल बड्ड मजा आब दलानक शान कहाँ बूढ़ पुरानक गान वला इन्टरनेटक शासनमे संस्कृति खातिर सोचत के छन्द : सारवती (ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ) Kundan Kumar Karna
देश भरि कहादन रेल चलतै आब फेर किछु विकासक खेल चलतै आब थालमे धमाधम पीच करतै बाट टोल-टोल हेलम हेल चलतै आब कामकाज हेतै सारहे बाईस योजनाक खातिर झेल चलतै आब बुद्धिमान सब बेहोश जेना भेल राजकाजमे बकलेल चलतै आब नागरिकसँ उप्पर छै बनल सरकार लोकतन्त्र ककरा लेल चलतै आब राजनीतिमे कुन्दन बढल अपराध जन जनारदनके जेल चलतै आब 212-122-212-221 © कुन्दन कुमार कर्ण