जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
दोसरकें बात पर नै उछल एको डेग अपनासँ तूँ चल अपने वुद्धि काज देतौ रे चाहे छी मूर्ख चाहे पढ़ल लोहा सेहो लीबि जाइ छै बोली जे रहतौ मीठ सरल संघर्षे कऽ नाम छै जिनगी घर बैसि भेटलै ककरा फल शमशान रहल हेतै कहियो जै ठां देखै छी आइ महल ओकर चुप्पी बुझाइ नाटक ओ जे बाजै त लागै गजल दुनियासँ भागब किए कुन्दन दलदलमे रहि खिलै छै कमल बहरे मीर © कुन्दन कुमार कर्ण