जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
बढलै देश-देश बीच हथियारक प्रतिस्पर्धा राष्ट्रियताक नाम पर अहंकारक प्रतिस्पर्धा मानवताक गप्प लोक कतबो करै जमानामे देखल बेवहारमे तिरस्कारक प्रतिस्पर्धा पेन्टागनसँ कोरिया सहनशीलता कतौ नै अछि मिसियो बात लेल भेल ललकारक प्रतिस्पर्धा साहित्यिक समाजमे चलल राजनीति सम्मानक लेखन पर धिआन नै पुरस्कारक प्रतिस्पर्धा धरती एक टा अकास एके समान छै कुन्दन भरि मुट्ठीक माटि लेल सरकारक प्रतिस्पर्धा 2221-2121-2212-1222 © कुन्दन कुमार कर्ण