जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
कोनो दर्दमे आइ धरि मिठास नै छल भरिसक मोनमे प्रेमिकाक बास नै छल मिलिते नैन तोरासँ ठोर बाजि उठलै अनचिन्हारके टोकितों सहास नै छल सुन्नरताक संसारमे कमी कहाँ छै आरो लेल केने हिया उपास नै छल नेहक लेल भेलौं बताह नै तँ कहियो जिनगी एहि ढंगक रहल उदास नै छल प्रियतम बिनु जुआनी कटति रहै अनेरो लागल जोरगर चाहके पिआस नै छल यौवन देखलौं सृष्टिमे अनेक कुन्दन एहन पैघ भेटल कतौं सुवास नै छल 2221-2212-121-22 © कुन्दन कुमार कर्ण