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मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

Tirhuta Lipi

गजल

रे हिया हमरा एतेक मजबूर नै कर चाहमे ककरो हमरेसँ तूँ दूर नै कर एकटा कित्ता अछि मोन सौँसे हमर ई बाँटि टुकड़ी-टुकड़ीमे अलग धूर नै कर काँच कोमल आ नवका जुआनी चढल छै आगि यादक यौवनमे लगा घूर नै कर एक त प्रेमक खातिर पिआसल रहै छी ताहि पर आरो उकसाक आतूर नै कर भागमे ककरा कुन्दन लिखल सब रहै छै कल्पनामे डुबि एना मोनके झूर नै कर 212-2222-122-122 © कुन्दन कुमार कर्ण

अन्तरवार्ता - रेडियो नेपाल

22 फरवरी, 2016 के रेडियो नेपालमे प्रत्यक्ष प्रसारित हमर अन्तरवार्तासँ सम्बन्धित किछु चित्र