आइ असमञ्जसमे छी
कोन चान देखू ?
उप्परका की निचलका ?
उप्परका छुछ्छे हाथ देखब त पाप
जँ उप्परका देखब त
कहीँ निचलका नै रूसि जाइ
कोन चान देखू ?
उप्परका की निचलका ?
उप्परका छुछ्छे हाथ देखब त पाप
जँ उप्परका देखब त
कहीँ निचलका नै रूसि जाइ
“साहित्य व्यक्तिक सभ्य आ गजल अनुशासित बनाबै छै ।”
Thursday, September 25, 2014
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कविता
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