हो भरल नेहक खिस्सासँ से किताब चाही
लोक जिनगी कोना एसगर बिता दए छै
एक संगीके हमरा तँ संग आब चाही
दर्दमे सेहो मातल हिया रहै निशामे
साँझ पडिते बोतलमे भरल शराब चाही
मोनमे मारै हिलकोर किछु सवाल नेहक
वास्तविक अनुभूतिसँ मोनके जवाब चाही
सोचमे ओकर कुन्दन समय जतेक बीतल
आइ छन-छनके हमरा तकर हिसाब चाही
2122-2221-212-122
© कुन्दन कुमार कर्ण
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