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जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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गजल: लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु

लगाबऽ दाउ पर पड़ै परान बन्धु मनुष बनै तखन सफल महान बन्धु बड़ी कठिनसँ फूल बागमे खिलै छै गुलाब सन बनब कहाँ असान बन्धु जबाब ओकरासँ आइ धरि मिलल नै नयन सवाल केने छल उठान बन्धु हजार साल बीत गेल मौनतामे पढ़ब की आब बाइबल कुरान बन्धु लहास केर ढेरपर के ठाढ़ नै छै कते करब शरीर पर गुमान बन्धु 1212-1212-1212-2 © कुन्दन कुमार कर्ण

थोड़े माटि बेसी पानि

शताब्दीसँ बेसीक इतिहास रहल मैथिली गजलके खास क' पछिला एक दशकसँ गजल रचना आ संग्रहक प्रकाशनमे गुणात्मक आ परिमाणात्म दुन्नू हिसाबे वृद्धि भ' रहल छै । एहि क्रममे किछु संग्रह इतिहास रचि पाठक सभक हियामे छाप छोडि देलकै तँ किछु एखनो धरि नेङराइते छै । कारण सृजनकालमे कोनो नै कोनो अंगविहिन रहि गेलै सृजना । संग्रहक भीड़मे समाहित सियाराम झा 'सरस' जीक पोथी 'थोड़े आगि थोड़े पानि' पढबाक अवसर भेटल । जकरा सुरुसँ अन्त धरि पढलाकबाद एकर तीत/मीठ पक्ष अर्थात गुणात्मकताक सन्दर्भमे विहंगम दृष्टिसँ अपन दृष्टिकोण रखबाक मोन भ' गेल । पहिने प्रस्तुत अछि पोथीके छोटछिन जानकारी: पोथी - थोड़े आगि थोड़े पानि विधा - गजल प्रकाशक - नवारम्भ, पटना (2008) मुद्रक - सरस्वती प्रेस, पटना गजल संख्या - 80टा पोथीमे जे छै थोड़े आगि राखू थोड़े पानि राखू बख्त आ जरुरी लै थोड़े आनि राखू (पूरा गजल पृष्ठ 85 मे) सरस जी प्रारम्भिक पृष्ठमे गहिरगर भावसँ भरल र्इ शेर प्रस्तुत केने छथि जे कि पोथीके नामक सान्दर्भिकता साबित क' रहल छै । पोथीमे 'बहुत महत्व राखैछ प्रतिबद्धता' शीर्

गजल

ई प्रेम हमरा जोगी बना देलक विरहक महलके शोगी बना देलक उपचार नै भेटल यौ कतौ एकर गम्भीर मोनक रोगी बना देलक मारै करेजामे याद टिस ओकर दिन राति दर्दक भोगी बना देलक संयोग जेना कोनो समयके छल तँइ जोडि दू हिय योगी बना देलक प्रेमक पुजगरी जहियासँ बनलौ हम संसार कुन्दन ढोगी बना देलक 221-2222-1222 © कुन्दन कुमार कर्ण

भक्ति गजल

अन्त सभके एक दिन हेबे करै छै छोडि दुनिया एक दिन जेबे करै छै मोन आनन्दित जकर सदिखन रहल ओ गीत दर्दोके समय गेबे करै छै जै हृदयमे भक्ति परमात्माक पनुकै बुद्ध सन बुद्धत्व से पेबे करै छै प्रेम बाटू जीविते जिनगी मनुषमे मरि क' के ककरोसँ की लेबे करै छै दान सन नै पैघ कोनो पुण्य कुन्दन लोक फिर्तामे दुआ देबे करै छै बहरे-रमल [2122-2122-2122] © कुन्दन कुमार कर्ण
Kundan Kumar Karna