जे कल्पनामे डुबा दै ओ छथि कवि
जे भावनामे बहा दै ओ छथि कवि
शब्दक मधुरतासँ करि मति परिवर्तन
जे दू हियाके मिला दै ओ छथि कवि
साहित्य मानल समाजक अयना छै
जे सोचके नव दिशा दै ओ छथि कवि
खतरा प्रजातन्त्र पर जौँ-जौँ आबै
जे देश जनता जगा दै ओ छथि कवि
संसार भरि होइ छै झूठक खेती
जे लोकके सत बता दै ओ छथि कवि
रचनासँ कुन्दन करै जादू एहन
जे चान दिनमे उगा दै ओ छथि कवि
2212-2122-222
© कुन्दन कुमार कर्ण
जे भावनामे बहा दै ओ छथि कवि
शब्दक मधुरतासँ करि मति परिवर्तन
जे दू हियाके मिला दै ओ छथि कवि
साहित्य मानल समाजक अयना छै
जे सोचके नव दिशा दै ओ छथि कवि
खतरा प्रजातन्त्र पर जौँ-जौँ आबै
जे देश जनता जगा दै ओ छथि कवि
संसार भरि होइ छै झूठक खेती
जे लोकके सत बता दै ओ छथि कवि
रचनासँ कुन्दन करै जादू एहन
जे चान दिनमे उगा दै ओ छथि कवि
2212-2122-222
© कुन्दन कुमार कर्ण
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