जकरा बुते उठल नै खर
कहत बनेलौं नवका घर
एक दिन बर जोतलनि हर
हगलनि पदलनि लगलनि जर
घिनमाघिन चललै सबतरि
हम छियै उपर तूँ छी तर
मौगी खातिर रूसल छौड़ा
नोकरी चाकरी ठां नै ठर
साँच किए बजलियै अहाँ
मनुष छियै की मनुषक झर
22-22-22-2
© कुन्दन कुमार कर्ण
“साहित्य व्यक्ति कऽ सभ्य आ गजल अनुशासित बनाबै छै ।”
Wednesday, July 29, 2020
Labels:
हजल
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