जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
इजोरियामे उगल छै चान जहिना
अहाँकें चेहरा पर चमकै मुस्कान तहिना
निखरल चेहरा तै पर गदरल जवानी
देखि बदरी बरसै अमृत सन पानी
चारु दिशामे अहींकें बखान ये
साउनमे हरिअर छै धान जहिना
अहाँकें चेहरा पर..........
सिनेहक नजरिसँ हमरा दिस तकलौं
छन भरिमे हमर हृदयमे बसलौं
दुनियाँ भऽ गेलै बहुते हरान ये
पान संग सोहाइत छै मखान जहिना
अहाँकें चेहरा पर..........
अहाँकें चेहरा पर चमकै मुस्कान तहिना
निखरल चेहरा तै पर गदरल जवानी
देखि बदरी बरसै अमृत सन पानी
चारु दिशामे अहींकें बखान ये
साउनमे हरिअर छै धान जहिना
अहाँकें चेहरा पर..........
सिनेहक नजरिसँ हमरा दिस तकलौं
छन भरिमे हमर हृदयमे बसलौं
दुनियाँ भऽ गेलै बहुते हरान ये
पान संग सोहाइत छै मखान जहिना
अहाँकें चेहरा पर..........
बहुत सुंदर शब्द संयोजन! बधाई
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