जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
अंगनामे कुचरल कौआ
कि जागि उठल बौआ
हवासँ आयल कोनो सनेश यौ
पियाकें यादमे भेलौं हम विभोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
बीत गेल होरी दीवाली
मोन रहैए सदिखन खाली
एक छन सौ साल लगैए
सुखि रहल अछि ठोरक लाली
किए छोडि चलि गेलौं परदेश यौ
कहिया आएत खुशीक भोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
लोक सब ताना मारैए
रंग विरंगी बात काटैए
असगर हम की–की सहबै
अपने घर विरान लागैए
आबो घूरि आउ अपन देश यौ
हमरो हृदयमे मचतै शोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
अंगनामे कुचरल कौआ...........
© कुन्दन कुमार कर्ण
कि जागि उठल बौआ
हवासँ आयल कोनो सनेश यौ
पियाकें यादमे भेलौं हम विभोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
बीत गेल होरी दीवाली
मोन रहैए सदिखन खाली
एक छन सौ साल लगैए
सुखि रहल अछि ठोरक लाली
किए छोडि चलि गेलौं परदेश यौ
कहिया आएत खुशीक भोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
लोक सब ताना मारैए
रंग विरंगी बात काटैए
असगर हम की–की सहबै
अपने घर विरान लागैए
आबो घूरि आउ अपन देश यौ
हमरो हृदयमे मचतै शोर
रहि–रहि नैनसँ टपकै नोर
अंगनामे कुचरल कौआ...........
© कुन्दन कुमार कर्ण
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