जदी छौ मोन भेटबाक डेग उठा चलि या हियामे चोट आ बदनमे आगि लगा चलि या छियै हम ठाढ़ एहि पार सात समुन्दरकें हियामे प्रेम छौ त आइ पानि सुखा चलि या जरै हमरासँ लोकवेद हार हमर देखि भने हमरा हराक सभकें फेर जरा चलि या बरेरी पर भऽ ठाड़ हम अजान करब प्रेमक समाजक डर जँ तोरा छौ त सभसँ नुका चलि या जमाना बूझि गेल छै बताह छियै हमहीं समझ देखा कनी अपन सिनेह बचा चलि या 1222-1212-12112-22 © कुन्दन कुमार कर्ण
ओ दर्द देलकै मुदा कनियों इलाज नै देलक
पद पैसा आ प्रतिष्ठा कतौ आइ काज नै देलक
कहबाक लेल लोक बहुत छै उदार बस्तीमे
तड़पैत रहलियै मुदा केओ अवाज नै देलक
छै शिक्षा स्वास्थ्य कृषिसँ विमुख सरकार
सीमेन्टकें शहर त बनेलक समाज नै देलक
हमरासँ लैत गेल अपन बूझि दैत गेलौं हम
ओ मूर देत की जे सुपतकें बियाज नै देलक
कत-कतसँ शब्द खोजि अनेकौ गजल सजेलौं हम
संगीत केर आश जकर सेहो साज नै देलक
मात्राक्रम: 2212-12112-2121-222
© कुन्दन कुमार कर्ण
पद पैसा आ प्रतिष्ठा कतौ आइ काज नै देलक
कहबाक लेल लोक बहुत छै उदार बस्तीमे
तड़पैत रहलियै मुदा केओ अवाज नै देलक
छै शिक्षा स्वास्थ्य कृषिसँ विमुख सरकार
सीमेन्टकें शहर त बनेलक समाज नै देलक
हमरासँ लैत गेल अपन बूझि दैत गेलौं हम
ओ मूर देत की जे सुपतकें बियाज नै देलक
कत-कतसँ शब्द खोजि अनेकौ गजल सजेलौं हम
संगीत केर आश जकर सेहो साज नै देलक
मात्राक्रम: 2212-12112-2121-222
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कुन्दन कुमार कर्ण |
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